जीएसटी के अंतर्गत कर वसूली
- कर के कम भुगतान अथवा त्रुटिपूर्ण कर प्रतिदाय अथवा गलत इनपुट कर क्रेडिट प्राप्त करने की घटनाएं अनजाने में हुई यथार्थ मूल (सामान्य मामले में) अथवा जानबूझकर कर चोरी का प्रयास (धोखाधड़ी के मामले) करने से घटित होती हैं। चूंकि दोनों प्रकार की घटनाओं में अपराध की प्रकृति पूर्णतया भिन्न है, इसलिए इस प्रकार के मामलों से निपटने के लिए कर एवं अर्थदंड की राशि की वसूली करने के लिए अलग-अलग प्रावधान किए गए हैं। इनके अतिरिक्तक, स्वैलच्छिक अनु पालन को प्रोत्साहित करने के प्रावधान भी हैं जैसे अगर विहित सीमा/कर अवधि के अंतर्गत ब्याज सहित देय कर की अदायगी कर दी जाती है तो शून्यी दंड अथवा कम अर्थदंड का प्रावधान है। अधोलिखित तालिका में स्वैच्छिक अनु पालन के प्रावधानों का एक स्पष्ट चार्ट दिया गया है:
- उपर्युक्त पैराग्राफों से यह देखा जा सकता है कि कम भुगतान अथवा त्रुटिपूर्ण प्रतिदाय अथवा अनुचित इनपुट कर क्रेडिट प्राप्त करने के सभी मामलों में उस व्यक्ति के लिए प्रोत्साहनों का प्रावधान है जो कर देयता स्वीकार करता है और स्वेच्छा उनका निर्वहन करता है। विधि में नोटिस जारी करने से पहले कर, ब्याज और शून्य अथवा नाममात्र जुर्माने (अपराध की प्रकृति के आधार पर) का भुगतान करने का अवसर देने का प्रावधान है और सुस्पष्ट( रूप से यह विनिर्धारित करता है कि ऐसे सभी मामलों में नोटिस जारी नहीं किया जाएगा और परिणामस्वरूप इनमें से किसी भी चूक का कोई अन्यस दृष्पिपरिणाम नहीं होगा। तथापि, प्रावधान यहीं पर समाप्त नहीं हो जाते हैं, और नोटिस जारी होने की 30 दिनों के भीतर कर और शून्य अथवा नाममात्र जुर्माने (अपराध की प्रकृति के आधार पर) का भुगतान करने का एक अन्य अवसर भी दिया जाता है और विधि में यह प्रावधान है कि ऐसा माल लिया जाता है कि उस नोटिस के संबंधित समस्त कार्रवाई पूरी हो चकी है। यदि कारण बताओ नोटिस जारी करना और तत्पश्चात आदेश जारी करना अनिवार्य हो जाता है तो जीएसटी अधिनियम में नोटिस और आदेश जारी करने की एक निश्चित समय-सीमा का प्रावधान करके इन सभी कार्रवाहियों को समय से पूरा करना सुनिश्चित किया गया है। यह समय-सीमा निम्नलिखित है: जीएसटी अधिनियम में इस बात का प्रावधान करके मामलों का समयोचित निपटान सुनिश्चित किया गया है कि यदि आदेश तीन वर्षों अथवा पांच वर्षों, जैसा भी मामला हो, की निर्धारित समय-सीमा के भीतर जारी नहीं किया जाता है तो ऐसा माना जाएगा कि न्यायनिर्णयन की कार्रवाई पूरी कर ली गई है। उपर्युक्ता सभी प्रावधानों से यह स्पष्ट, है कि स्-आक व्लित कर अथवा कर के रूप में संग्रहित राशि का भुगतान न करने को अन्ये छोटे-छोटे भुगतानों से अलग माना जाएगा और इन दोनों मामले में बिना जुर्माने के इनका भुगतान करने का केवल एक ही तरीका है और वह है भुगतान की नियत तिथि से 30 दिनों के भीतर इनका ब्याज सहित भुगतान कर दिया जाए।
- इन सभी प्रावधानों से यह स्पष्ट हो जाता है कि शू न्य अथवा नाममात्र जुर्माने सहित कर देयता का निर्वहन करने और उसमें संशोधन करने के पर्यापत अवसर हैं। तथापि, उस व्यक्ति के लिए कुछ अवप्रेरण भी हैं जो इन लाभकर प्रावधानों का उपयोग नहीं कर पाता है। इसके अतिरिक्ति, विधि में यह भी प्रावधान है कि किसी आदेश के खिलाफ अपील दायर न करने के लिए बोर्ड कुछ मौद्रिक सीमाएं भी निर्धारित कर सकता है। इसका आशय है कि यदि कर-निर्धारिती के पक्ष में कोई आदेश पारित किया जाता है तो यदि इसमें अंतर्ग्रस्त राशि विनिर्धारित सीमा से कम है तो विभाग अपील दायर करके इस मामले पर अन्यं कोई कार्रवाई नहीं करेगा। इस समय, मौजूदा विधि के अंतर्गत विभिन्न न्यायिक फोरमों में अपील दायर न करने की मौद्रिक सीमा निम्नलिखित है:
- किसी समुचित अधिकारी द्वारा न्यायनिर्णयन की यथोचित प्रक्रिया का अनु सरण करके देय के रूप में संपुष्ट कर अथवा धनराशि की उगाही करने के लिए उठाए गए अंतिम कदम वसूली की क्रियाविधि है। इसलिए, इन सभी लाभकर प्रावधानों के बावजूद यदि देय कर तथा अन्य राशि का भुगतान नहीं हो पाता है और करदाता आदेश पारित हो जाने और 3 महीने की सांविधिक सीमा पू री हो जाने के पश्चाात भी देयों की अदायगी नहीं कर पाता है तो सक्षम अधिकारी कर वसूली की कार्रवाई शुरू कर सकता है। सीजीएसटी अधिनियम, 2017 के अंतर्गत इन कर वसूली प्रावधानों में एक सुपरिभाषित प्रक्रिया निर्धारित की गई है जो निम्नलिखित है: Recommended Articles
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